संस्कारपरक हो शिक्षा:-हमारी शिक्षा प्रणाली जिस प्रकार के संस्कारों का सृजन करेगी, हमारे राष्ट्र का चरित्र उसी प्रकार का बन जाएगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य छात्रों में केवल विभिन्न विषयों की जानकारी देना ही प्रतीत होता है। यद्यपी शिक्षा से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना चाहिए।
एक सबल राष्ट्र के लिए स्वस्थ, विवेकशील, संस्कारित चरित्रवान एवं जिम्मेदार नागरिकों का निर्माण ही शिक्षा का मूल उद्देश्य होना चाहिए।
शिक्षा में यह भी पढ़ाया जाना आवश्यक है, कि हम किस में अहम भूमिका निभा सकते हैं। शिक्षा में संस्कारों को होना कोई विकल्प नहीं है, अपितु शिक्षा की अंतर भूत आत्मा है।
वर्तमान की सामाजिक संरचना का यदि हम गहन चिंतन कों, तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेगे, कि अराजकता, हिंसा, भ्रष्टाचार, भय एवं आतंकवाद फैलाने वाले लोग भी कम शिक्षित नहीं हैं। परन्तु शिक्षा में संस्कारों के अभाव के कारण यह स्थिति पैदा हुई है।
अतः आइए हम सभी भारतीय संस्कृति नैतिक मूल्यों एवं उच्च आदर्शों से युक्त योगपरक, संस्कारित शिक्षा को अपनाएं और एक सबल, सशक्त, स्वस्थ, समृद्ध एवं चरित्रवान राष्ट्र का निर्माण करें।